अध्ययन के नाम पर चटपटापन चाहिए, सनसनी चाहिए, दूसरे के जीवन में तांकझांक चाहिए, यह सब धीमे विष की तरह हमें भीतर से खोखला किए जा रहा है।
3.
जैसी मेरी शैया है उसी के अनुरूप.... ' अर्जुन की ओर दृष्टि डाली. ' मेरे शिर को भी साध दो, वत्स, ' तुरंत धरती की ओर तीन शर छोड़े पार्थ ने, और धरती में धँसे उन शरों के पृष्ठों पर भीष्म ने शीष टिका दिया. ' बस अब कुछ नहीं चाहिये. ' सब धीमे स्वरों में अपनी-अपनी कह रहे हैं.